संत रविदास जी की कहानियां
संत रविदास जी की कहानियां
बालक को जीवनदान
काशी में एक विधवा सेठानी रहती थी। उस सेठानी का पहले बड़ा परिवार था। एक बार वे लोग तीर्थयात्रा को गए। दैवयोग से वहाँ नाव दुर्घटना हो गई, जिससे सारा परिवार पानी में डूब गया। केवल एक बहू बची रही, जो गर्भवती थी। रोती-चिल्लाती और कष्टों को सहतो हुई वह किसी तरह अपने घर आई और अकेली रहने लगी।
समय पाकर उसकी कोख से एक बच्चे ने जन्म लिया। बच्चे का मुँह देखकर वह बहुत खुश हुई, क्योंकि वही उसका एकमात्र सहारा था। बच्चा जब बड़ा होकर खेलने-कूदने लगा तो एक बार वह गंभीर रूप से बीमार हो गया। सेठानी ने उपचार और पूजा-पाठ पर बहुत खर्च किया, किंतु लाभ कुछ भी नहीं हुआ। बच्चे का रोग दिन-प्रतिदिन भयंकर रूप धारण करता गया। वह हरेक से रो-रोकर कहती, मेरे बच्चे की जान बचाओ। किसी ने उसे गुरु रविदास का परिचय दिया।
वह बीमार बच्चे को लेकर गुरु रविदास के पास पहुँच गई, मगर वहाँ पहुँचते ही दैवयोग से उसका बच्चा मर गया फिर क्या था, सेठानी बिलख-बिलखकर रोने लगी। गुरु रविदास से उसका दुःख देखा नहीं गया। वह उस बच्चे के लिए प्रभु से प्रार्थना करने लगे, उनकी जीवनसंगिनी लोना बाई मृत बच्चे को गोद में लेकर बैठ गई और उसके सिर पर हाथ फेरने लगी। गुरु रविदास ने बच्चे के मुँह में जल डाला तो वह जीवित हो उठा। प्रसन्न होकर सेठानी गुरु रविदास की परम भक्त बन गई।
(ममता झा)
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साभारः संत रविदास जी की कथाओं से।